आज संध्या 5 बजे अगर बड़ी संख्या में लोग शंख, घंटी और थाल बजाते दिखे तो इसका क्या अर्थ है? क्या सब के सब मोदी भक्त हैं या फिर सभी निपट अतार्किक अज्ञानी हैं ? या सभी तरह के महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान भटकाने की सरकार की कुटिल नीति के आवेग में बह जाने वाले भावुक और अपरिपक्व लोगों की भीड़ मात्र थी यह? मुझे लगता है कि ऐसे नतीजों पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी।
इसे मोदी स्तुति नहीं बल्कि अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिये सतर्क रहने हेतु लिये गये संकल्प के शंखनाद के रूप में भी समझा जा सकता है। अतः न तो मोदी विरोधियों को और न ही मोदी भक्तों को इसे राजनीतिक लाभ-हानि के नज़रिए से देखना चाहिए। देश और दुनिया के जो हालात हैं उसमें ग़लती किसकी कितनी रही, ये जानना महत्वपूर्ण तो है मगर अभी इसी में उलझकर रह जाने का समय नहीं है। हाँ, इतना तो मानना होगा कि स्वास्थ्य सेवाओं को आम आदमी की पहुँच से बहुत दूर ले जाकर पिछले एक दशक से हमारी सरकारों ने बहुत बड़ी मूर्खता का परिचय दिया है। सरकार की जन विरोधी नीतियों ने स्वास्थ्य सेवाओं को बाजार के अधीन लाकर ऐसी अप्रत्याशित स्थिति में आम लोगों की सुरक्षा से न सिर्फ आँखे फेर ली है, बल्कि अमानवीय समझौता भी किया है। सरकार या सरकारों की जन विरोधी नीतियों के कारण हम इस दयनीय स्थिति में हैं। अगर इटली, जर्मनी, फ्रांस, इंगलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका जैसे विकसित और आर्थिक रूप से समृद्ध देश इस महामारी की विनाशलीला से भयाक्रांत हैं, तो फिर हमारी क्या बिसात? करोना अगर घनी बस्तियों, कस्बों और गाँवों में फैली तो हमारी क्या स्थिति हो सकती है इसके बारे में अनुमान लगाना भी संभव नहीं होगा। इसका कोई उपचार नहीं है।
अतः घरों में बंद होकर, शंख फूंककर भी अगर हम इससे सुरक्षित रहने की कोशिश करने का संकल्प ले सकें तो भी कम नहीं। शायद करोना को नहीं, पर कम से कम अपनी लापरवाही को तो हम इस तरह के नवीन कर्मकांडों से भगा ही सकते हैं। बचे रहने कि कोशिश तो कर ही सकते हैं। बाकी भविष्य की जो भयावह तस्वीर दिख रही है, उसके बरख़श कौन जाने आने वाले दिनों में कितने लोग पोस्ट लिखने और पढ़ने की स्थिति में भी होंगे।
अतः एक बार पुनः मोदी भक्तों और मोदी विरोधियों से निवेदन है कि आपने शंख फूंका हो या न फूंका हो, फिलहाल मोदी स्तुति या मोदी निंदा को कुछ दिनों के लिये विराम दें तथा अपना और अपने परिवार के साथ समाज की सुरक्षा हेतु करोना की गंभीरता पर चर्चा करें एवं जागरुकता अभियान को आगे बढ़ाने में अपना समय लगाएँ। पूरी दुनिया के संवेदनशील बौद्धिक यही कर रहे हैं। जीवन की जीत की दुर्धर्ष जीजिविषा के साथ सबों के कुशल क्षेम की कामना करते हुए सबको स्नेह सिक्त नमस्कार।
इसे मोदी स्तुति नहीं बल्कि अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिये सतर्क रहने हेतु लिये गये संकल्प के शंखनाद के रूप में भी समझा जा सकता है। अतः न तो मोदी विरोधियों को और न ही मोदी भक्तों को इसे राजनीतिक लाभ-हानि के नज़रिए से देखना चाहिए। देश और दुनिया के जो हालात हैं उसमें ग़लती किसकी कितनी रही, ये जानना महत्वपूर्ण तो है मगर अभी इसी में उलझकर रह जाने का समय नहीं है। हाँ, इतना तो मानना होगा कि स्वास्थ्य सेवाओं को आम आदमी की पहुँच से बहुत दूर ले जाकर पिछले एक दशक से हमारी सरकारों ने बहुत बड़ी मूर्खता का परिचय दिया है। सरकार की जन विरोधी नीतियों ने स्वास्थ्य सेवाओं को बाजार के अधीन लाकर ऐसी अप्रत्याशित स्थिति में आम लोगों की सुरक्षा से न सिर्फ आँखे फेर ली है, बल्कि अमानवीय समझौता भी किया है। सरकार या सरकारों की जन विरोधी नीतियों के कारण हम इस दयनीय स्थिति में हैं। अगर इटली, जर्मनी, फ्रांस, इंगलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका जैसे विकसित और आर्थिक रूप से समृद्ध देश इस महामारी की विनाशलीला से भयाक्रांत हैं, तो फिर हमारी क्या बिसात? करोना अगर घनी बस्तियों, कस्बों और गाँवों में फैली तो हमारी क्या स्थिति हो सकती है इसके बारे में अनुमान लगाना भी संभव नहीं होगा। इसका कोई उपचार नहीं है।
अतः घरों में बंद होकर, शंख फूंककर भी अगर हम इससे सुरक्षित रहने की कोशिश करने का संकल्प ले सकें तो भी कम नहीं। शायद करोना को नहीं, पर कम से कम अपनी लापरवाही को तो हम इस तरह के नवीन कर्मकांडों से भगा ही सकते हैं। बचे रहने कि कोशिश तो कर ही सकते हैं। बाकी भविष्य की जो भयावह तस्वीर दिख रही है, उसके बरख़श कौन जाने आने वाले दिनों में कितने लोग पोस्ट लिखने और पढ़ने की स्थिति में भी होंगे।
अतः एक बार पुनः मोदी भक्तों और मोदी विरोधियों से निवेदन है कि आपने शंख फूंका हो या न फूंका हो, फिलहाल मोदी स्तुति या मोदी निंदा को कुछ दिनों के लिये विराम दें तथा अपना और अपने परिवार के साथ समाज की सुरक्षा हेतु करोना की गंभीरता पर चर्चा करें एवं जागरुकता अभियान को आगे बढ़ाने में अपना समय लगाएँ। पूरी दुनिया के संवेदनशील बौद्धिक यही कर रहे हैं। जीवन की जीत की दुर्धर्ष जीजिविषा के साथ सबों के कुशल क्षेम की कामना करते हुए सबको स्नेह सिक्त नमस्कार।
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