अश्क़़ अपने यूँ ही मत लुटा दीजिए
इश्क़ का इक समंदर बना दीजिए
डूबकर पार दरिया करें इश्क़ का
बेबसी अपने मन की हटा दीजिए
अब कली फूल बनकर महकने को है
कोई ताज़ी हवा फिर बहा दीजिए
रातरानी अचानक महकने लगी
आप अपना इरादा जता दीजिए
दिल धड़कता रहा ग़म भी पलता रहा
आइए बाग़ दिल का सजा दीजिए
दर्द दिल में छुपाएँ नहीं इस तरह
दास्ताँ कुछ मुझे भी बता दीजिए
चाहते प्यार अपना जताना अगर
तो ग़ज़ल कोई अपनी सुना दीजिए
रोज़ हम जोहते बाट यूँ ही 'अमर'
कोई दीदार उनका करा दीजिए
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