मंगलवार, 14 जुलाई 2009
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३० जून २००९ को दुमका में हुए दो समारोह काफी चर्चित रहे.पहला समारोह या कहें समारोहों की श्रृंखला तो प्रत्येक वर्ष हल-क्रांति दिवस के रूप में आयोजित की जाती है,परन्तु दूसरा समारोह इस मायने में महत्त्वपूर्ण रहा कि यह आचार्य ज्योतींद्र प्रसाद झा 'पंकज' की ९०वी जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया था.आचार्य ज्योतींद्र प्रसाद झा 'पंकज' ९०वी जयंती समारोह समिति तथा पंकज-गोष्ठी परिवार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित यह समारोह काफी चर्चित रहा तथा मिडिया ने भी इसे काफी प्रमुखता दी.३० जून के प्रभात-खबर ने "आचार्य ज्योतींद्र प्रसाद झा 'पंकज' की ९०वी जयंती आज " शीर्षक से बड़ा समाचार तो छापा ही,अलग से एक बड़ा लेख भी प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था "स्वयं में एक संस्थागत स्वरुप थे कविवर पंकज जी".लेखक ने इस लेख में पंकज जी के कई पहलुओं को उद्घाटित करते हुए समारोह की सफलता की नींव दाल दी.
समारोह की शुरुवात होने में एक घोषित समय से एक घंटे का विलंब हुआ क्योंकि २८-२९जुने को मुसलाधार वारिस तो हुई ही थी,३० की सुबह से ही घनघोर वर्षा हो रही थी.मनो भयंकर तपिस में झुलस रहे संताल-परगना को पंकज जी पहले की तरह एक बार फिर से खुशहाल करने का यत्न कर रहे हो.खैर ,११.३० पर डॉ. प्रमोदिनी हंसदा ,प्रति-कुलपति,एस.के.एम.विश्वविद्यालय,दुमका,द्वारा स्नेह और श्रद्धा का दीप प्रज्वल्लित करने के साथ शुरू हो गया.उस समय तक संताल-परगना के सभी जिले के बुद्धिजीवी,विद्वान्,कवि एवं शिक्षाविद पधार चुके थे.
समारोह को संबोधित करते हुए अपने उद्बोधन भाषण में डॉ.प्रमोदिनी ने आचार्य पंकज को संताल-परगना की धरती पर पैदा हुए उन विरले महान विभूतियों में से एक बताया जिनकी बहुमुखी प्रतिभा एवं अनुपम अवदानों से संताल परगना का जन-मन सदा-सर्वदा के लिए ऋणी रहेगा.परत-कुलपति ने विस्तार से पंकज जी के जीवन वृत्त एवं कार्यो का उल्लेख करते हुए बताया की किस तरह से १९३८ से १९७७ तक पंकज जी संताल परगना की समस्त हलचलों से न सिर्फ जुड़े रहे वल्कि हिंदी विद्यापीठ के छात्र के रूप में महात्मा-गाँधी के प्रत्यक्षा एवं निकट सम्पर्क में आने के बाद से ही आजीवन गांधीवादी बन गए.१९४२ के भारत छोडो आन्दोलन में देवघर के शहीद आश्रम छात्रावास के अधीक्षक के रूप में अपने छात्रो के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों को संचालित करते रहे.दिन में समर्पित शिक्षक एवं रत में क्रन्तिकारी विप्लवी---ए था पंकज का अनूठा व्यक्तित्व.
राष्ट्र की स्वाधीनता के बाद पंकज ने देश के सबसे पिछडे इलाके में से एक संताल परगना में शिक्षा और साहित्य के प्रसार में खुद को समर्पित कर दिया.
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