शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009


कल पुनः बेचैन जी को सुनाने का मौका मिला.एक सुखद एहसा है उनको सुनना.दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन की ओर से हिंदी भवन में --एक शाम कुंवर बेचैन के नाम ---कार्यक्रम में उनके एकल काव्य पाठ में हम डूबते चले गए.डॉ.व्यास ने ठीक ही कहा की पिछले पांच दशक की गुटबंदी के दौर में बिना किसी गुट का होते हुए भी खुद को साहित्य में प्रासंगिक बनाये रखना उनकी सबसे बड़ी सफलता है.परन्तु मेरी नजर में उनके काव्य संसार में अभिव्यक्त वदना और प्रेम के स्वर ने ही उनको प्रासंगिक बनाये रखा.उनके पूर्ववर्ती के रूप में पंकज के काव्य में भी जिजीविषा ,संघर्ष और प्रेम के भाव को ही प्रमुखता मिली है.पंकज और बेचैन की कविताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है.------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें