बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

भाव भीनी श्रधांजलि देकर पंकज जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की.



१७-२१ जनवरी तक आचार्य ज्योतींद्र प्रसाद झा 'पंकज' के पैत्रिक ग्राम--खैरबनी, पोस्ट--सारठ, जिला--देवघर, झारखण्ड में पंकज जी की स्मृति में पंच- दिवसीय चंडी-परायण यज्ञ का आयोजन हुआ. इस यज्ञ के मुख्य अतिथि थे झारखण्ड के कृषि-मंत्री श्री सत्यानन्द झा एवं प्रोफेसर सत्यधन मिश्र इस कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि थे. पंकज जी के तीसरे सुपुत्र एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वामी श्रद्धानंद महाविद्यालय में असोसिएट प्रोफेसर अमर नाथ था के सान्निध्य में कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यं का सञ्चालन पंकज जी के दूसरे सुपुत्र और राजभासा विभाग, भारत सरकार में उप-निदेशक डॉक्टर विश्वनाथ झा ने किया और पंकज जी के बड़े सुपुत्र डॉक्टर नन्द किशोर झा, जो यज्ञ समिति के अध्यक्ष भी थे, ने कार्यक्रम क़ि अध्यखता की.

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मंत्री श्री सत्यानन्द झा ने भरी सभा में गौरव के साथ इस बात को रखा की आज वह जो कुछ भी हैं वह पंकज जी की कृपा से ही हैं. पंकज जी ने उनके व्यक्तित्व को गढ़ा था. निराशा के दिनों में वह यस सोचकर हिम्मत रखते थे की पंकज जी जैसे महान पुरुष का शिष्य होकर उन्हें कभी हिम्मत नहीं हराना चाहिए और अंततः उन्हें सफलता मिली. उन्होंने घोषणा की की पंकज जी के साहित्य को झारखण्ड सरकार संरक्षित रखे इसका वे प्रयास करेंगे. पंकज जी के नाम सारठ में एक महाविद्यालय खोला जाये--प्रोफेसर सत्यधन मिश्र की इस अपील का उन्होंने पुरजोर समर्थन किया और अपनी पूरी सेवा देने का वादा किया.

प्रोफेसर अमर नाथ झा ने बताया की आगामी ३० जून २०११ को देवघर में पंकज जी की ९२वीं जयंती मनायी जाएगी. २९ जून को प्रोफेसर सत्यधन मिश्र ७५ वर्ष पूरे कर लेंगे अतः उनकी हीरक जयंती भी मनाई जाएगी.

कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए डॉक्टर विश्वनाथ झा ने कहा क़ि पंकज जी क़ि याद में उनकी जन्मभूमि में होने वाला यह यज्ञ पूरे गांववालों क़ि तरफ से पंकज जी को दी जाने वाली एक विनम्र श्रधांजलि है. यज्ञ समिति के अध्यक्ष और पंकज जी के बड़े सुपुत्र डॉक्टर ननद किशोर झा ने बताया क़ि इस पूरे यज्ञ में गाँव के लोगों ने तन-मन-धन से बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है.

ज्ञातव्य है कि यह कार्यक्रम कई कारणों से खैरबनी के लिए ऐतिहासिक कार्यक्रम था. पहली बार इस गाँव में यज्ञ का आयोजन हुआ. पहली बार ही माँ दुर्गा क़ी प्रतिमा की पूजा भी इस गाँव में हुयी. फिर पहली बार ही पंकज जी को श्रधांजलि देते हुए ग्रामीणों ने मिलकर कोई कार्यक्रम किया. और पहली बार ही इस गाँव में किसी मंत्री का आगमन हुआ.

लगता है कि अब संताल परगना के मनीषियों कि सुधि लेने कि घडी आ गयी है. पंकज जी से शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब अन्य महाप्रभुओं कि स्मृति में भी आयोजित हो, ऐसा प्रयास हम करते रहेंगे. संताल परगना का 'इतिहास लिखा जाना अभी बाकी है' इस पुस्तक के प्रोटो-टाईप का विमोचन करते हुए मंत्री जी ने आशा व्यक्त की कि अब संताल परगना का इतिहास भी विद्वानों का ध्यान आकर्षित करेगा. सभा में उपस्थित सभी लोगों एवं मीडिया के साथियों ने इस कार्यक्रम एवं पुस्तक की खूब चर्चा की. इस तरह पंकज जी के ऋणी संताल परगन के लोगों ने अपनी भाव भीनी श्रधांजलि देकर पंकज जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की.

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