अरे भाई चोंकिये नहीं, न ही वितृष्णा से मुह बिचकायिए. पंकज-गोष्ठी ब्लॉग विशुद्ध एतिहासिक एवं साहित्यिक संस्था को जीवित रखने का उपक्रम है, इसीलिए htt नमक नवीन ब्लॉग की शुरुआत की है मेने, कृपया उसे जरूर विसित करें और मेरा मनोबल बढ़ाएं. हाँ इस ब्लॉग के नवीन अवतार के पीछे की तड़प को भी अगर आप पहचान पायें तो मेरा सपना सार्थक होगा. ज्यों-ज्यों में संताल परगना पर अपना शोध बाधा रहा हूँ, त्यों-त्यों मेरा विशष बढ़ता जा रहा है कि इस भूमि कि भयंकर उपेक्षा हुई है. ये तो महान सिदु-कान्हो-चाँद-भैरव का पुरुषार्थ था कि इस भूखंड को हल में, यही १५५ बरस पहले एक पहचान मिली है, वह भी विखंडित पहचान. मंदार पर्वतराज, जो इस पवित्र भूमि का मुकुट रहा है, आज भी इससे अलग है. बाबा बैद्यनाथ इसके ह्रदय स्थल में , शक्ति के ह्रदय-स्थल में भी, विद्यमान हैं यहाँ. पर शक्ति देवी माँ तारा के रूप में, जो इस भूमि कि शक्ति रही हैं, वह आज भी बाहर रहने को विवश हैं. पूरा अरण्य-प्रदेश जो इस प्राचीन नारी-खंड कि पहचान है, आज भी इससे बाहर है, बांका के जंगल के रूप में. जमुई के नरेश, प्रतापी गिद्धोर नरेश, तो बाबा बैद्यनाथ के अनन्य सेवक रहे हैं, पर आज जमी भी इससे बाहर है. पांडेश्वर की पौराणिक कथा से हम सब परिचित हैं जो इस पूरे प्रदेश को एक अलग पहचान देती रही, है आज इससे अलग है. वर्दवान के नवाबों ने बैद्यनाथ मंदिर को संरक्षण प्रदान करके इसके प्रति जो भक्ति भाव प्रदर्शित किया था वह आज कितने लोगों को ज्ञात है? बर्दवान को भी क्यों इससे बाहर रखा गया है? और सांस्कृतिक रूप से इस क्षेत्र को क्यों जहाँ-तहां उलझा कर रख दिया है आज की राजनीति ने, जबकि यह क्षेत्र पूरी तरह से अपर मंदार / राढ / सुहमा के रूप में अति प्राचीन कल में भी अपना मस्तक उन्नत किये हुए महान मंदार, बैद्यनाथ तथा तारापीठ जैसे तीर्थ-स्थलों का पवित्र भूस्थल बना रहा है. इसीलिए हमने इस नए नामकरण के साथ इस ब्लॉग का पुनर्वतार किया है, अपनी इस व्यथ कथा को बताने के लिए. कृपया हमारी इस मुहीम को अपना आशीर्वाद आप सब दें--यही इस पवित्र भूमि के जन-मन की करुण पुकार है. हम अपनी जन्म भूमि के जन-मन की इस करुण पुकार को आप सब के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करते रहेंगे, यही विश्वास है हमारा. p://www.pankajgoshthi.blogspot.com
रविवार, 13 फ़रवरी 2011
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