हाँ ये वो मंजर तो नहीं...२....( धारावाहिक ).
हां तो में कह रहा था कि बहुत पहले ही गोसाई जी कह गए है --पर उपदेश कुशल बहु तेरे --सो भाई जब तक अपनी नौकरी , चाहे टी वी की नौकरी हो , चाहे अखबार की नौकरी या फ़िर चाहे विश्वविद्यालय की ही नौकरी क्यों न हो , सब के सब अपनी चमड़ी बचाकर बोलेंगे और लिखेंगे भी.व्यवस्था के खिलाफ खूब लिखेंगे और खूब बोलेंगे.बेचारी व्यवस्था तो किसी का कुछ कर नही सकती अब , क्योंकि उसने तो तुम्हें एंकर , पत्रकार , लेखक , प्रोफ़ेसर और न जाने क्या-क्या पहले ही बना रखा है। सो तुम कलन तोड़ते जाओ ,पन्ने भरते जाओ ,स्टूडेंट्स को भासन पिलाते जाओ , समाचार चेनलो पर मशीन की तरह बजाते जाओ ,व्यवस्था तुम्हारा कुछ आमदानी ही करेगी,कुछ जेब गरम ही होगी.और लगे हाथ तुम महान भी बन जाओगे-महान पत्रकार ,महान लेखक ,महान आचार्य आदि-इत्यादि। सो भाई हम सब क्या कर रहे है ,बखूबी जानते हैं। हम यह भी जानते है कि नेता लोग जो नही कहते है और करते रहते है उससे भी नेता लोगो की धाक बढाती ही है। पैसे से सबकुछ ख़रीदा जाता है हमारे लोकतंत्र , महान लोकतंत्र में। बुद्धिजीवी तो सब दिन से नेताओं की दरबारी करते रहे , बिकते रहे और लिखते रहे। राजा-महाराजाओं के पास भ...