शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

स्ताद उन्हें ग़ज़ल नहीं मानते ते हमें नवीन नामकरण ढूँढने चाहिए। फिलहाल तो मैं उन्हें "ग़ज़ल-बेबह्र" कहना पसंद करता हूँ। आदरणीय डॉ गंगेश गुंजन जी, वरिष्ठ और अग्रज ग़ज़लकार "आज़ाद-ग़ज़ल" कहना पसंद करते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार और विद्वान-कवि डॉ अमरेन्द्र भी इस तरह के प्रयोग से सहमति जता रहे हैं ।नामकरण के बारे में विनम्रता से एक बार फिर कुछ कहना चाहता हूँ। वेसे तो "आज़ाद -ग़ज़ल" ज्यादा सुंदर प्रतीत होता है, परंतु "आज़ाद-काफ़िया" की तर्ज पर इसे ग़ज़ल का दोष माना जाएगा। इसके उलट "छंद-मुक्त कविता" की तरह ही "बे-बह्र ग़ज़ल" एक आंदोलन की प्रतीति करा सकता है।इसमें मत़ला-मक़्ता, रदीफ-काफ़िया और शेर-मिसरे के नियमों का यथावत पालन किया जा सकता है, सिर्फ छूट ली जा सकती है बह्र में।कितनी भी मात्राओं के मात्रिक छंद में, गति-यति के नियमों का निर्वाह करते हुए अगर हम ग़ज़ल कहें तो वह भी कर्णप्रिय होगा, ऐसा हम कह सकते हैं।ग़ज़ल की सबसे बड़ी विशेषता तो उसकी मधुरता और नफ़ासत ही होती है, जिनका निर्वाह , मात्रिक छंद में बे-बह्र होकर भी किया जा सकता है।
वैसे अग्रज रचनाकारों की राय को ही मैं भी नि:संकोच स्वीकारने को तत्पर हूँ।अतः इस संभाव्य आंदोलन के बारे में मित्रों की राय जानना चाहता हूँ। इसमें मेरा निजी स्वार्थ भी है। इस बहाने मेरी भी लगभग 80-85 ग़ज़लों को स्वीकृति मिल जाएगी। वैसे, जैसा मैंने कहा, अब मैं बा-बह्र ग़ज़लें कहने लगा हूँ। लेकिन अभी भी बे-बह्र या आज़ाद-ग़ज़ल कहना ज्यादा पसंद करूंगा। अत: क्यों नहीं ऐसी ग़ज़लों के हम सभी शायर मिलकर एक छोटा मुशायरा आयोजित करें ? यह साहित्य का एक नवीन आंदोलन भी बन सकता है।
आप सबकी राय की प्रतीक्षा है।
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Lalit Narayan Dwary Leek see hat kar ek alag sunder soch ko saakar rup dene ka prayas... Badhai.
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Shanker Nath Jha बह्र में गजल लिखना मेरे लिये असंभव सा है
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Bikram Singh बह्र में लिखने में असमर्थ लोग ग़ज़ल लिखें ही क्यों , कुछ और लिखें। ये तो वही बात हुई कि चोर आंदोलन करें कि चोरी को पुण्य कर्म घोषित किया जाए।
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Amar Pankaj Jha प्रतिक्रिया के लिए आभार।किसी को भी असहमति का पूरा अधिकार है, आपको भी।लेकिन जिस तल्खियत से आपने टिप्पणी की है उतनी ही शिद्दत से अगर बहुत सारे रचनाकार "आजाद-ग़ज़ल" की अगर बात करते हैं तो हम पूरी तरह आँखें मूँद नहीं सकते। छंद-मुक्त कविता भी तो इतिहास की एक वास्तविकता बनकर आई, जो कविता का वास्तविक फाँरमेट बन गई।और हाँ, ये सभी नाम अपने-अपने दायरे के गंभीर रचनाकारों के नाम हैं।चाहे जो भी हो, रचनाकारों की तुलना चोरों से करके आप अन्याय तो कर ही रहे हैं, ऐसे अशालीन शब्दों के प्रयोग की आपसे अपेक्षा नहीं थी।

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