शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

माना की हम इतिहास के सर्वाधिक खौफनाक दौर के गवाह बन रहे हैं, लेकिन वाबजूद इनके हमारे आस-पास बहुत कुछ ऐसा घटित होता रहता हैं जिनमें जिंदगी करवटें बदलती हैं। जीवन-शून्य नहीं हो गए हैं हम। हमें नित-स्पंदित हो रही जिंदगी की ही तो तलाश रही है!

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